तेरी गुस्ताखियां हर दफ़ा दरकिनार करते रहे
तेरी खताओं को नादानी समझ प्यार करते रहे
तेरी बातों में तो कभी जिक्र मेरा आया भी नही
देख कर ख़्वाब तेरा खुद को बेकरार करते रहे
तू हर दफ़ा मेरी उम्मीदों के टुकड़े करता रहा
ना जाने क्या सोच फिर भी ऐतबार करते रहे
जिन राहों से तू कबका आगे निकल चुका था
हम आज भी उन्ही राहों में इंतज़ार करते रहे
मानकर अपना तुझे ईमान भी हवाले किया
ज़लालत ही पायी खुद को शर्मसार करते रहे
'मौन' रहे हर बार हम बस यही एक खता हुई
चुप्पी ही वो गुनाह है जो बार बार करते रहे
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
ReplyDeleteजी सादर आभार आपका🙏
Deleteवाह ... अच्छे शेर ग़ज़ल के ....
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका
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